Political Science Subjective Question Bihar Board
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर किन्हीं 10 प्रश्नों के उत्तर दें।
अति महत्त्वपूर्ण मॉडल सेट – 5
Q.1. भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका ?
Ans. भारत में केन्द्र तथा राज्यों की राजनीति में जातीयता का बोलबाला एक निर्धारक तत्व रहता है। जातीयता की भावना बड़े पैमाने पर आज दलबदल को प्रभावित कर रही है। जातीयता की इस संकीर्ण भावना ने राजनीति को अपवित्र कर दिया है। मुख्यमंत्रियों और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री को भी जातीयता के संदर्भ में देखा जा रहा है। आज यह बात महसूस की जा रही है कि व्यक्ति चाहे किसी भी राजनीति दल या समूह में क्यों न हो, लेकिन जातीयता तथा सामूहिक भावना के कारण वे आज एक हो जाने को तत्पर हो जाते हैं। बिहार की राजनीति को उदाहरण के रूप में ले सकते हैं। जब श्री कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे और वे काफी विरोधों के बावजूद पिछड़े वर्ग को आरक्षण दे रहे थे तब रामलखन सिंह यादव सहित सारे सामूहिक सदस्य उनको अपना नेता मानते थे। अतएव जातीय तथा सामूहिक भावना दलबदल को प्रोत्साहित करती है। इसी आधार पर आज भारत में अनेक राजनीतिक दल और नेता हो गये हैं।
Q.2. भारत में दलीय व्यवस्था पर टिप्पणी लिखें।
Ans. मनुष्यों के उस संगठन को राजनीतिक दल कहते हैं, जिसमें वे अपने सम्मिलित प्रयत्न द्वारा किसी ऐसे सिद्धांत पर राष्ट्रीय हितों में अभिवृद्धि करने हेतु संगठित होते हैं जिनके विषय में वे सहमत हैं। गेटेल के शब्दों में राजनीतिक दल नागरिकों का वह पूर्णतया या आंशिक रूप से व्यवस्थित संगठन है जो एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करता है और अपने मताधिकार के प्रयोग द्वारा शासन पर नियंत्रण करने के लक्ष्य से अपनी नीति को कार्यरूप देने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार प्रत्येक राजनीतिक दल का एक निश्चित उद्देश्य होता है, जिसके आधार पर वह जनता में लोकप्रिय होकर अपनी सरकार बनाना चाहता है।
Q.3. लोकसभा में विपक्ष का नेता कौन होता है? इसके क्या कार्य हैं?
Ans. विपक्षी दल का कार्य सत्तारूढ़ दल की गलत नीतियों की आलोचना करना है। विरोधी दल लोकसभा में सरकार को सचेष्ट करता है और उसे अपनी गलतियों को सुधारने को बाध्य करता है। विपक्ष यदि सशक्त नहीं होता तो सरकार लोकसभा में निरंकुश हो जाती है और किसी खास वर्ग के हित में कानून बनाती है। लोकसभा के सशक्त विरोधी दल के कारण राज्यसभा द्वारा पारित विधेयक भी संशोधित हो जाता है। अतः लोकसभा में सशक्त विपक्ष की नितांत आवश्यकता है।
Q.4. ग्राम पंचायत के कार्यों का वर्णन करें।
Ans. ग्राम पंचायत की महत्ता भारतीय संविधान में, उसकी धारा 40 में स्वीकार की गयी है। ग्राम पंचायत की स्थापना प्रत्येक ग्राम में करने की कोशिश की जाती है। अगर किसी ग्राम की आबादी ज्यादा है तो वहाँ दो पंचायतों की स्थापना भी की जाती है और यदि आबादी कम है, तो कई ग्रामों को मिलाकर भी एक ग्राम पंचायत स्थापित की जाती है।
ग्राम पंचायत के कार्य :
(i) पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजनाओं को तैयार करना; (ii) कृषि और बागवानी का विकास और उन्नति
(iii) मवेशी की नस्ल, कुक्कुट और अन्य पशुधन में सुधार;
(iv) चारागाह का विकास।
(v) वृक्षारोपण और चारा विकास
(vi) ग्रामीण और कुटीर उद्योगों को बढ़ाना;
(vii) ग्रामीण गृह-निर्माण
(viii) पेयजल के कुओं, हौजों, जलाशयों और चापाकलों का निर्माण, मरम्मत और अनुरक्षण
(ix) जल प्रदूषण का नियंत्रण और निवारण;
Q.5. राष्ट्रीय विकास परिषद् के क्या कार्य हैं ?
Ans. भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश को आर्थिक प्रगति के मार्ग पर ले जाने के लिए योजनागत विकास का मॉडल चुना गया, देश के लिए समग्र रूप से योजनाएँ बनाने, प्राथमिकताओं का निर्धारण करने तथा संसाधनों का आवंटन करके योजनाओं को कार्यान्वित करने का कार्य निष्पादन करने के लिए मार्च 1950 में एक गैर साविधिक निकाय के रूप में योजना आयोग का गठन किया गया, योजना आयोग द्वारा तैयार किये गए योजना प्रारूप को राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा अनुमोदित किया जाता था। योजना आयोग (अब नीति आयोग) और राष्ट्रीय विकास परिषद् दोनों के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। योजना आयोग में स्थायी सदस्यों के अतिरिक्त भारत सरकार के वित्तमंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री आदि भी सदस्य होते हैं, जबकि राष्ट्रीय विकास परिषद् में राज्यों के मुख्यमन्त्रियों सहित योजना आयोग के सदस्य तथा केन्द्र सरकार के मंत्रियों को आमंत्रित किया जाता है।
नीति योजना आयोग द्वारा तैयार किए गए प्रस्तावों को अन्ततः राष्ट्रीय विकास परिषद् द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
Q.6. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ बताइये।
Ans. कार्यपालिका, वित्तीय व्यवस्थापिका तथा न्यायिक अधिकारों के अतिरिक्त राष्ट्रपति को आपातकालीन सम्बन्धी महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान किया गया है। वह निम्नांकित तीन परिस्थितियों में आपातकालीन घोषणा कर सकता है
(i) युद्ध या बाह्र आक्रमण अथवा आंतरिक अशांति या उसका खतरा होने पर
(ii) राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर
(iii) आर्थिक या वित्तीय संकट आने पर
उपर्युक्त वर्णित कुछ महत्वपूर्ण अधिकार भारत के राष्ट्रपति को संविधान द्वारा प्रदान किए हैं जो इन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति की भाँति देश का वास्तविक शासक बनाने में मदद करता है।
Q.7. न्यायिक पुनरावलोकन क्या है ?
Ans. न्यायिक पुनर्विलोकन का तात्पर्य संविधान की सर्वोच्चता और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसकी सर्वोच्चता की रक्षा करने की व्यवस्था से है। यदि संघीय या राज्य विधानमण्डलों द्वारा संविधान का अतिक्रमण किया जाता है, अपनी निश्चित सीमाओं के बाहर कानूनों का निर्माण किया जाता है या मौलिक अधिकारों के विरूद्ध कानूनों का निर्माण किया जाता है, तो संघीय या राज्य विधानमंण्डल द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि अथवा संघीय या राज्य प्रशासन द्वारा किये गये ऐसे प्रत्येक कार्य को सर्वोच्च न्यायालय अवैधानिक घोषित कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय की इस शक्ति को ही न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति कहा जाता है। राज्यों के संबंध में इस शक्ति का प्रयोग संबंधित उच्च न्यायालय के द्वारा किया जा सकता है।
यद्यपि भारतीय संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति प्रदान की गयी है, फिर भी भारत में न्यायिक पुनर्विलांकन का क्षेत्र उतना व्यापक नहीं है जितना कि वह संयुक्त राज्य अमरीका में है। वस्तुतः ऐसे कुछ कारण हैं, जिन्होंने भारत में न्यायिक पुनर्विलोकन की व्यवस्था को संयुक्त राज्य अमरीका की तुलना में सीमित कर दिया है।
Q.8. संघ केन्द्रशासित क्षेत्र क्या है ?
Ans. भारत सरकार ने 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून पारित किया। आयोग द्वारा की गई सिफारिश में थोड़ा हेर-फेर कर भारतीय संसद ने 31 अगस्त 1956 ई. को राज्य नगठन अधिनियम पारित कर दिया। इसे उसी साल के। नवम्बर को लागू किया गया। इस प्रभावित करने के उद्देश्य से संविधान में कुछ संशोधन किए गए। इस अधिनियम द्वारा समस्त भारतीय क्षेत्र को कंवल दो प्रकार की इकाइयों में विभाजित किया। इन्हें राज्य और संघ या केन्द्र द्वारा शासित क्षेत्र की संज्ञा दी गई।
अतः संघ शासित क्षेत्र भारत के संघीय प्रशासनिक ढांचे की एक उप-राष्ट्रीय प्रशासनिक इकाई है जिसमें भारत सरकार का शासन होता है। भारत में कुल सात संघीय क्षेत्र हैं :
1. अंडमान निकोबार द्वीप 2. दिल्ली 3. चंडीगढ़ 4 दमन-दियु 5. पांडीचेरी 6. दादरा-नगर हवेली तथा 7 लक्षद्वीप।
जम्मू-कश्मिर तक लदाख वर्तमान में केन्द्रशासित प्रदेश बन गये हैं।
कुछ संघीय क्षेत्रों में भी विधानसभा की व्यवस्था है और उनमें संसदीय प्रकार की कार्यपालिका की व्यवस्था है जैसे कि पांडिचेरी में| अब दिल्ली में भी विधानसभा की व्यवस्था कर दी गई है।
Q.29. गठबन्धन सरकार से आप क्या समझते हैं ?
Ans. भारतीय संसदीय व्यवस्था में सर्वप्रथम केन्द्रीय स्तर और राज्य स्तर पर व्यवस्थापिका के लोकप्रिय सदन (लोकसभा/विधानसभा) के चुनाव होते हैं। इन चुनावों में जब किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो जाता है और यह राजनीतिक दल अपना एक नेता चुन लेता है, जब राज्य का प्रधान (राष्ट्रपति/राज्यपाल) बहुमत दल के को प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री पद पर मनोनित करता है तथा मंत्रिमण्डल के गठन के साथ ही एकदलीय सरकार का गठन हो जाता है, लेकिन जब लोकप्रिय सदन के चुनाव में किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता, त्रिशंकु लोकसभा या त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती है, तब राजनीतिक दलों और दलीय नेताओं के बीच गठबंधन को जन्म देने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है और जो गठबंध न राज्य के प्रधान को अपने बहुमत से आश्वस्त कर देता है, उस गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है और गठबंधन का नेता, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री मिलीजुली सरकार का गठन करता है। इस प्रकार मिलीजुली सरकार एक ऐसी सरकार होती है, जिसमें कम से कम दो राजनीतिक दलों की भागीदारी होती है।
Q.30. गुट निरपेक्षता संबंधी भारतीय नीति क्या है ?
Ans. भारत की विदेश नीति का एक मूल सिद्धान्त गुटनिरपेक्षता है। इसका अर्थ है कि भारत अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के सम्बन्ध में अपनी स्वतंत्र निर्णय लेने की नीति का पालन करता है। सारा विश्व 1991 तक दो गुटों में विभाजित था- एक अमेरिकी गुट तथा दूसरा सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट। भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपनी विदेश नीति में गुट निरपेक्षता के सिद्धान्त को अत्यधिक महत्त्व दिया। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को जन्म देने तथा उसको बनाए रखने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 1961 से लेकर 24 फरवरी, 2003 द्वारा इसके शिखर सम्मेलन (कुआलालम्पुर) तक भारत ने इसको बराबर सशक्त बनाए रखने का प्रयत्न किया है। भारत प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या का समर्थन या विरोध उसमें निहित गुण और दोषों के आधार पर करता रहा है। भारत ने यह नीति अपने देश की राजनीतिक, आर्थिक और भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए अपनायी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत को अमेरिकन तथा पूर्व सोवियत संघ के गुटों ने अपनी ओर आकर्षित करने तथा अपने गुट में शामिल करने का प्रयास किया परंतु भारत किसी भी गुट में शामिल नहीं हुआ।
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भाग – A | समकालीन विश्व की राजनीति |
1 | शीत युद्ध का दौर |
2 | दो ध्रुवीयता का अंत |
3 | समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व |
4 | सत्ता के वैकल्पिक केंद्र |
5 | समकालीन दक्षिण एशिया |
6 | अंतर्राष्ट्रीय संगठन |
7 | समकालीन विश्व में सुरक्षा |
8 | पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन |
9 | वैश्विकरण |
भाग – B | स्वतंत्रता के समय से भारतीय राजनीति |
1 | राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियां |
2 | एक दल के प्रभुत्व का दौर |
3 | नियोजित विकास की राजनीति |
4 | भारत के विदेश संबंध |
5 | कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना |
6 | लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट |
7 | जन आंदोलनो का उदय |
8 | क्षेत्रीय आकांक्षाएं |
9 | भारतीय राजनीति : नए बदलाव |
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