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Psychology Class 12 Chapter 3 Notes PDF – जीवन की चुनौतियों का सामना | NCERT Psychology Class 12 in Hindi pdf

Psychology Class 12 Chapter 3 notes PDF

Chapter – 3

♣  जीवन की चुनौतियों का सामना   

[Meeting Life Challenges]

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👉 इस अध्याय में हमलोग निम्नलिखित टॉपिक को पढ़ेंगे 🌹

दबाव की प्रकृति;  प्रकार एवं स्रोत;  मनोवैज्ञानिक प्रकार्य तथा स्वास्थ्य पर दबाव का प्रभाव; दबाव का सामना करना; सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम का उन्नयन।

★ दबाव (Stress) :- जीवन में मानव, चुनौतियों (Challenge) का सामना (face) करने के लिए उससे निपटने के लिए अधिक प्रयास करते हैं। चुनौती से निपटने के लिए मानव सारे संसाधन तथा अवलंब व्यवस्था (Support System) का पूरा सहारा लेती है तथा समस्याएं, चुनौतियों और कठिन परिस्थितियों से मानव पर दबाव पड़ता है ।

> दबाव विद्युत की भांति होती है।

> हर प्रकार के दबाव खराब या विनाशकारी नहीं होता है।

> कम दबाव से व्यक्ति धीमी गति से कार्य करते हैं या वह उदासीन परिस्थिति में रहते हैं।

> दबाव को जीवन का एक अंग के रूप में देखा जाता है ।

◆ मुख्यतः दबाव तीन प्रकार के होते हैं :

1) भौतिक तथा पर्यावरणीय दबाव :- इस दबाव के कारण शारीरिक दशा में परिवर्तन होती है। जैसे पौष्टिक भोजन की कमी, चोट लगना आदि भौतिक दबाव उत्पन्न करती है तथा भूकंप, बाढ़, ग्रीष्म, प्रदूषण आदि से पर्यावरणीय दबाव उत्पन्न होते हैं।

2) मनोवैज्ञानिक दबाव (Psychological Pressure) : वह दबाव जो मन में उत्पन्न होता है मनोवैज्ञानिक दबाव कहते हैं।

> मनोवैज्ञानिक दबाव के स्रोत कुंठा, द्वंद्व ,सामाजिक दबाव इत्यादि है।

a) द्वंद्व (Conflict) :- मनोवैज्ञानिक दबाव का यह स्रोत दो या दो से अधिक असंगत आवश्यकताओं की स्थिति उत्पन्न होता है, जैसे कोई व्यक्ति अध्ययन करें या नौकरी करें ।

b) कुंठा (Frustration) :- यह सामाजिक भेदभाव के कारण उत्पन्न होता है।

3) सामाजिक दबाव (Social Pressure) :- यह दबाव उन व्यक्तियों के कारण उत्पन्न होता है जो मानव के ऊपर अत्यधिक मांगे थोप देते हैं।

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◆ दबाव की प्रकृति (Nature of Pressure) : Stress (दबाव) शब्द, लैटिन शब्द  Strictus से लिया गया है , जिसका अर्थ Stringer (तंग या संकीर्ण) होता है।

>Stressor (दबाव कारक) :- खराब संबंध, शोर, भीड़ (Crowd) आदि दबाव उत्पन्न करने का कार्य करते हैं। जो दबाव कारक अर्थात दबाव उत्पन्न करने वाले कारक कहलाते हैं।

  • Strain ( तनाव ) यह बाह्य प्रतिबलक के प्रति प्रतिक्रिया होती है।
  • हैन्स सेलये (Hans Selye) को आधुनिक दबाव शोध का जनक कहे जाते हैं।
  • हैन्स सेलये के अनुसार दबाव की परिभाषा ” किसी भी मांग के प्रति शरीर की अविशिष्ट अनुक्रिया है “
  • दबाओ एक गत्यात्मक मानसिक / संज्ञानात्मक अवस्था है।

◆ लेज़ारस(Lazarus) ने दो प्रकार के मूल्यांकन में विभेद किया है।

  1. प्राथमिक मूल्यांकन (Primary Appraisal) तथा
  2. द्वितीयक मूल्यांकन (Secondary Appraisal)

1. प्राथमिक मूल्यांकन (Primary Experience) :- इसका संबंध नया चुनौतीपूर्ण पर्यावरण का उसके सकारात्मक या नकारात्मक तटस्थ परिणामों का प्रत्यक्षण से है।

प्रत्यक्षण का अर्थ बाहरी वातावरण के बारे में ज्ञान प्राप्त कर उस पर विश्लेषण करना है।

नकारात्मक घटनाओं का मूल्यांकन करने से संभावित नुकसान, खतरा या चुनौती का पता चलता है।

2. द्वितीयक मूल्यांकन ( Secondary Appraisal) :- जब किसी घटना का प्रत्यक्षण दबावपूर्ण घटना के रूप में किया जाता है तो उसे द्वितीयक मूल्यांकन की श्रेणी में रखा जाता है।

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◆दबाव पूर्ण परिस्थितियों से निपटने का कारक :

  1. पूर्व अनुभव (Past Experience) :- अगर कोई व्यक्ति पहले किसी ऐसे परिस्थिति का सामना कर चुका है जो उसके सामने वर्तमान में है, तो उस व्यक्ति को ऐसी परिस्थिति से निपटने में कम दबाव सहन करनी पड़ेगी।
  2. नियंत्रणीय (Controllable) :- व्यक्ति स्थिति अर्थात परिस्थिति को अगर अपने नियंत्रण या प्रभुत्व में ले लेती है तो वह उससे5 आसानी से जीत जाता है और कम दबाव झेलनी पड़ती है।

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★ हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) :- यह दो पथों के माध्यम से किया प्रारंभ करता है।

 प्रथम पद : इसमें स्वायत्त तंत्रिका तंत्र शामिल है। एड्रिनल ग्रंथि (अधिवृक्क ग्रंथि) रुधिर में बड़ी मात्रा में कैटेकोलामाइंस (एपीनेफरीन और नॉरएपिनेफरीन) छोड़ देती है जिस कारण शरीर क्रियात्मक में परिवर्तन हो जाता है।

द्वितीय पथ : इसमें पिट्यूटरी ग्रंथि सम्मिलित है जो कोर्टिसोल स्त्रन करता है और ऊर्जा प्रदान करती है।

★ कोई व्यक्ति के दबाव का अनुभव तीव्रता (Intensity) अवधि (Duration) तथा जटिलता (Complexty) में अलग-अलग हो सकता है।

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 > दबाव का अनुभव, किसी व्यक्ति के पास उपलब्ध संसाधन, धन, समाजिक कौशल सामना करने की क्षमता, अवलंब का नेटवर्क (Supporting Network) आदि द्वारा निर्धारित होता है।

 > दबाव के लक्षण –

                     आत्म सम्मान में कमी, भए, खाने में कठिनाई, औषधि का गलत इस्तेमाल,  शारीरिक रोग एक जगह ध्यान इकट्ठा ना कर पाना,  गलत निर्णय,  स्मृति ह्रास इत्यादि है ।

★ दबाव के स्रोत अर्थात जिस स्त्रोत से दबाव उत्पन्न होता है दो प्रकार के होते हैं।

1) जीवन घटनाएं (Life Events) : जैसे किसी की परिवार या संबंधों में मृत्यु हो जाना, झगड़ालू पड़ोसी, बिजली-पानी की कमी, यातायात में भीड़-भार इत्यादि घटनाएं दैनिक जीवन में घटित होती है, जो दवा उत्पन्न करने में सहायक है।

2) अभिजात घटनाएं (Elite Event) : इसके अंतर्गत रेलगाड़ी या सड़क दुर्घटना, लूट, भूकंप, सुनामी, अग्निकांड जैसे घटनाएं सम्मिलित है।

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★ दबाव का प्रभाव (Effect of Stress) : चार प्रमुख प्रभाव है।

  1. संवेगात्मक प्रभाव (Emotional Effect) : इसमें दबाव के कारण व्यक्ति अकेलापन रहने लगते हैं अर्थात परिवार तथा मित्र से विमुख हो जाते हैं । मन में बदलाव आ जाता है तथा विश्वास में कमी होती है। जिस कारण और ज्यादा संवेगात्मक समस्या बढ़ने लगती है।
  2. शरीर क्रियात्मक प्रभाव (Physiological Effect) :- जब मनुष्य दबाव में रहता है तो इसका प्रभाव शरीर की क्रियाओं पर भी पड़ता है और शरीर के कुछ हारमोंस का स्राव बढ़ जाता है, जिस कारण

            हृदय गति, रक्तचाप स्तर (B. P Level) परिवर्तन आ जाता है। तथा एपीनेफरीन और नॉरएपीनेफरीन भी छोड़ा जाता है और शरीर की क्रिया पर प्रभाव डालता                है।

  1. संज्ञानात्मक प्रभाव (Cognitive Effect) :- यदि दबाव (Stress) के वजह से दाब (Pressure) लगातार बना रहता है तो व्यक्ति मानसिक अतिभार (ज्यादा load) से ग्रस्त हो जाता है इसमें व्यक्ति ठोस फैसला नहीं ले पाता है।
  2. व्यवहारात्मक प्रभाव (Behavioural Effect) :- कम पौष्टिक भोजन करना, उत्तेजित पदार्थों का सेवन करना, नशीली पदार्थ का सेवन करना, समन्वय में कमी, चक्कर आना आदि दबाव का व्यवहारात्मक प्रभाव है।

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★ (Burn Out) बर्न आउट :- ज्यादा लंबे समय तक थकावट, कमजोरी, ऊर्जा की कमी, आदि संकेत शारीरिक परिश्रांति को प्रकट करता है जबकि मानसिक परिश्रांति (अत्यधिक थकावट) निराशा, चिंता, के रूप में दिखता है। परिश्रान्ति की इस अवस्था को बर्न आउट कहते हैं।

★ सामान्य अनुकूलन संलक्षण अर्थात GAS (General Adaptation Syndrome) : दबाव लंबे समय तक रहने पर शरीर पर कंथा घटित होता है , Selye ने इसका अध्ययन

किया और सभी में समान प्रतिरूप वाली शारीरिक अनुक्रियाए पाई जिसे उन्होंने GAS का नाम दिया, उनके अनुसार GAS के तीन चरण होते हैं।

    1. सचेत प्रतिक्रिया (Alarm Reaction)
    2. प्रतिरोध (Resistance) तथा
    3. परिश्रांति (Exhaustion, अधिक थकावट)

★ मनस्तंत्रिका प्रतिरक्षा विज्ञान (Psychoneuroimmunology) : विज्ञान के इस शाखा मन, मस्तिष्क तथा प्रतिरक्षक तंत्र पर दबाव के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है।

>T – सहायक कोशिका (T Helper cells) पर HIV हमला करता है जो AIDS का कारक है।

>T – Helpercells प्रतिरक्षात्मक क्रियाओं में वृद्धि करता है।

★ जीवन शैली :- दबाव के कारण मनुष्य के जीवन शैली या स्वास्थ्य को नुकसान करने वाले व्यवहार उत्पन्न हो सकता है।

दबाव से ग्रसित व्यक्ति रोगजनको (Pathogens) के समक्ष असुरक्षित रहते हैं।

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★ Coping (सामना करना) :- समस्याओं को चरण बद्ध हल करने से दबाव का सामना किया जा सकता है । जिन व्यक्तियों में दबाव का सामना करने की क्षमता कम होता है उनमें प्रतिरक्षक अनुक्रिया कमजोर हो जाती है ।

> एंडलर (Endler) तथा पार्कर (Parker) ने दबाव का सामना करने के लिए तीन (युक्तियां) कौशल दी है।

  1. कृत्य – अभिविन्यस्त युक्ति
  2. संवेग – अभिविन्यस्त युक्ति
  3. परिहार – अभिविन्यस्त युक्ति

> लेजारस तथा फोकमैन (Folkman) के अनुसार दबाव का सामना करने के लिए दो अनुक्रियाए है।

  1. समस्या-केंद्रित (Problem Focused)
  2. संवेग-केंद्रित (Emotional Focused)

> दबाव को कम करने की तकनीके

  1. विश्रांति की तकनीक :– यह विश्रांति शरीर के निचले भाग से शुरू होती है तथा मुख तक लाई जाती है और पूरा शरीर विश्राम अवस्था में आ जाता है।
  2. बायोफीडबैक या जैव प्रति प्राप्ति :- इसमें शरीर की क्रियात्मक पक्षों का परीवीक्षण कर उन्हें फीडबैक दिया जाता है।

इसमें प्रशिक्षण की तीन अवस्था होती है।

संज्ञानात्मक व्यवहारात्मक तकनीक : इसमें व्यक्ति को दबाव के विरुद्ध तैयार किया जाता है।

मिचेंबोम (Meichenbaum) ने दबाव संचारण प्रशिक्षण (Stress Inoculation Training) की विधि विकसित की है।

व्यायाम :- व्यायाम कर दबाव को कम किया जा सकता है जैसे दौड़ना, साइकिल चलाना।

प्रत्येक व्यक्ति को सप्ताह में कम से कम 4 दिन एक साथ अर्थात लगातार 30 मिनट तक व्यायाम का अभ्यास करना चाहिए।

★ अग्रहिता (Assertiveness) :- इसमें व्यक्ति बिना हिचकिचाए खुलकर अपनी भावनाओं (जैसे क्रोध, प्रेम) को प्रकट करता है।

ऐसे व्यक्ति में उच्च आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास तथा अटूट भावना होती है।

★ सविवेक चिंतन :- व्यक्ति मन से चिंता को निकाल कर दबाव को कम कर सकता है।

★ संबंधों में सुधार :- व्यक्ति बिगेर परिवारिक संबंध तथा बिछड़े मित्रों से संबंध बनाकर अपना दबाव को कम कर सकता है।

★ स्वयं की देखभाल :- मनुष्य अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देकर दबाव मुक्त हो सकता है । तथा संतुलित आहार (Balance Diet) लेकर मनुष्य दबाव से छुटकारा पाएगा।

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★ सामाजिक अवलंब (Social Support) :- व्यक्ति समाज में रहकर सामाजिक प्यार, विश्वास तथा साथ पाकर व्यक्ति दबाव मुक्त हो सकता है।

★ सूचनात्मक अवलंब (Informational Support) पाकर मनुष्य दबाव को कम कर सकता है।

★ सांवेगिक अवलंब (Emotional Support) : दबाव की स्थिति में अगर परिवार, सहायक मित्र, व्यक्ति के साथ खड़ा है, तो वह सांवेगिक अवलंब कहलाता है।

 

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