class 12 economics chapter 3 notes in hindi

Class 12 Economics Chapter 3 Notes in hindi उत्पादन और लागत | Economics Chapter 3 Class 12 notes

Class 12 Economics Chapter 3 Notes in hindi

Chapter – 3  (व्यष्टि अर्थशास्त्र)

🔷 उत्पादन और लागत 🔷

[Production and Costs]

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★ उत्पादन (Production) :- वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत मशीनी उपकरण सहित मानवीय आवश्यकता की वस्तुओं का जैसे कपड़ा, खाद्दान्न इत्यादि का निर्माण होता है,  उत्पादन कहलाता है।

Or (या)

उत्पादन व प्रक्रिया है जिसमें आगतो को निर्गत में बदला जाता है, उत्पादन कहलाता है।

आगत का अर्थ भूमि, कच्चा माल इत्यादि तथा निर्गत का अर्थ तैयार पक्का माल से है।

> निर्गत उपभोक्ता (Consumer) द्वारा उपभोग (उपयोग) किया जाता है।

> साधारण भाषा में उत्पादन का अर्थ वस्तु या पदार्थ का निर्माण करना होता है।

> उत्पादन के चार साधन होते हैं (means of production)

a) भूमि (Land)

b) पूंजी (Capital) / Finance )

c) श्रम (Labour) तथा

d) साहस (Barave)

★ लागत (Cost) :- उत्पादन कर्ता (Producer) अर्थात फैक्ट्री या फॉर्म के मालिक को कच्चे माल के बदले जो कुछ चुकाना पड़ता है,  उसे लागत कहते हैं।

( या )

       किसी भी निर्गत वस्तु (उपभोग की वस्तु) को बनाने में जो खर्च होता है उसे लागत कहते हैं।

★ आगम :- फर्म या (उद्योग) फैक्ट्री उत्पादित वस्तुओं को अर्थात निर्गत को बाजार में बेचते हैं,  तथा उसे धन की अथवा मुद्रा की प्राप्ति होती है ,  जिसे आगम कहते हैं।

★ फर्म का लाभ :- आगम तथा लागत के मध्य अंतर को फर्म का लाभ कहते हैं।

फर्म का लाभ = आगम – लागत

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★ उत्पादन फलन (Production Function ) :- यह वह कारक है जो फर्म द्वारा ग्रहण किया गया अर्थात खरीदा गया कच्चा माल (आगत) तथा उसके द्वारा तैयार किया गया पक्का माल (निर्गत) के बीच के संबंध को बताता है।

या (Or)

उत्पादन फलन फर्म द्वारा उपयोग में लाए गए आगतो और फार्म के द्वारा उत्पादित निर्गतो के बीच का संबंध है।

> उत्पादन दो प्रकार के होते हैं।

  1. A) अल्पकालीन उत्पादन फलन अथवा आपातकालीन उत्पादन फलन :- कम समय में अर्थात अल्पकाल (Short Time) में कम से कम एक कारक (जैसे श्रम , पूंजी ) में बदलाव नहीं लाया जा सकता है। और यह स्थिर रहता है। उत्पादन में बदलाव लाने के लिए फर्म केवल दूसरे कारक में ही परिवर्तन ला सकता है , जिसे अल्पकाल उत्पादन फलन कहते हैं।
  2. B) दीर्घकालीन उत्पादन फलन :- लंबे समय में अर्थात दीर्घकाल में उत्पादन के सभी कारक में बदलाव लाया जा सकता है जैसे फॉर्म के लिए भूमि का बदलाव अर्थात एक जगह से दूसरी जगह जाना।

दीर्घ काल में उत्पादन के सभी कारक में परिवर्तन लाया जा सकता है,.  इसमें कोई स्थिर नहीं रहता है। इसे दीर्घकाल उत्पादन फलन के नाम से जाना जाता है।

 

★ कुल उत्पाद (Total Product) :- किसी निश्चित समय में किसी निश्चित फॉर्म द्वारा बनाया गया सामान का कुल योग को उस फॉर्म का कुल उत्पाद कहते हैं।

> कुल उत्पाद (TP) को श्रम (Labour) को घटाने पर घटाया जा सकता है तथा श्रम को बढ़ाने पर बढ़ाया जा सकता है ।

> कुल उत्पाद (Tp) को कुल प्रतिफल (Total Return) या परिवर्ती आगतों का कुल भौतिक उत्पाद (Total Physical Product) भी कहते हैं।

★ औसत उत्पाद (Average Product) :- कुल उत्पाद तथा कुल उत्पादित इकाइयों के मध्य अनुपात को औसत उत्पाद कहते हैं।

औसत उत्पाद = कुल उत्पाद / निर्गत की गई कुल इकाई

★ सीमांत उत्पाद (Marginal Product) :- सभी आगतो को स्थिर रखकर अथवा एक समान मानकर किसी एक इकाई आगत में बदलाव के कारण जो कुल उत्पाद में बदलाव आता है उसी को सीमांत उत्पाद (MP) कहते हैं ।

सीमा उत्पाद  = निर्गत में बदलाव /आगत में बदलाव

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★ परिवर्तनीय अनुपातों का नियम (Law of Variable Production) :- स्थिर आगत सहित परिवर्ती आगत की मात्रा में बढ़ोतरी करने से औसत उत्पाद (AP) और सीमांत उत्पाद (MP) एक सीमा (Limit) तक बढ़ती  है, और फिर कुछ समय के बाद घटने लगती है।

इसी को परिवर्तनीय अनुपातों का नियम कहते हैं।

> इसे परिवर्ती उत्पादों का नियम या समान सीमांत उत्पाद का नियम भी कहते हैं।

> परिवर्तनीय अनुपातो का नियम का ग्राफ

★ पैमाने का प्रतिफल (Return to Scale) :- पैमाने का प्रतिफल उत्पादन फलन (Production Function) की प्रकृति ( प्रवृत्ति ) के बारे में बताता है जिसे पैमाने का प्रतिफल कहते हैं।

दीर्घकाल (Long time) में कोई भी उत्पत्ति का साधन स्थिर नहीं रहता है, वह बदलते रहते हैं।

अर्थात सभी उत्पत्ति के साधन परिवर्तनशील होते हैं, समय तथा आवश्यकता को देखते हुए उसमें बदलाव लाया जाता है।

      जैसे ज्यादा उत्पाद के लिए श्रम तथा भूमि का विस्तार बढ़ाना।

> इसके अंतर्गत तीन नियम है।

A) समान प्रतिफल का नियम (Law of Constant Returns) :- इस नियम अनुसार उत्पत्ति के साधनों में जितना प्रतिशत बढ़ोतरी किया जाए तो उत्पाद ( निर्गत ) में भी उसी समान बढ़ोतरी होगी ।

जैसे उत्पत्ति के साधन में साधन (आगत) में 10% वृद्धि करने पर उत्पाद (निर्गत) में भी 10% वृद्धि होती है।

> अर्थात समान प्रतिफल का नियम में

    (20%) आगत = (20%) निर्गत

           Input  =   Output

          

B) बढ़ते प्रतिफल का नियम (Law of Increasing Returns) :- जब सभी उत्पत्ति के साधनों में एक निश्चित अनुपात में बढ़ोतरी की जाती है तो उत्पाद (निर्गत) उस निश्चित अनुपात से अधिक बढ़ (Increase) जाती है, जिसे बढ़ते प्रतिफल का नियम कहते हैं।

जैसे यदि उत्पत्ति के साधनों में 30% वृद्धि की जाती है तो उत्पाद (निर्गत) बढ़कर 40% हो जाती है

> अर्थात बढ़ते प्रतिफल का नियम में

(30%) आगत < (40%) निर्गत

 

C) घटते प्रतिफल का नियम (Law of Decreasing Returns) :- समस्त उत्पादन के साधनों में वृद्धि करने पर उत्पाद बढ़ने के बजाय घट जाती है, जिसे घटते प्रतिफल का नियम कहते हैं ।

जैसे उत्पादन के साधन में 20% वृद्धि करने पर उत्पाद (निर्गत) 15% होती है।

> घटते प्रतिफल का नियम के लिए

आगत > निर्गत

Input > Output

 

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>★ समान प्रतिफल का नियम (Law of Constants Returns) :- उत्पादन फलन पैमाने स्थिर प्रतिफल (CRS) (Constant Returns Scale) को दर्शाता है।

>★ बढ़ते प्रतिफल का नियम (Law of Increasing  Returns) :- उत्पादन फलन पैमाने बृद्धिमान उत्पादन फलन (Increasing Returns ) को दर्शाता है।

>★ घटते प्रतिफल का नियम ( law of decreasing returns) उत्पादन के ह्रासमान फलन पैमाने को दर्शाता है।

★उत्पत्ति ह्रास का नियम ( law of of diminishing returns) :- इस नियम के अनुसार अगर किसी एक उत्पत्ति के साधन की माप को स्थिर रखा जाए तो अन्य साधनों की माप एक निश्चित समय के पश्चात बढ़ोतरी होती है, जिसे उत्पत्ति ह्रास का नियम कहते हैं।

 

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  • Excellent (अति उत्तम)
  • Conception (धारणा / विचार)
  • of (का)
  • Normal (सामान्य)
  • or (या)
  • Maniacal (सनकी)
  • Incidents (घटनाएं)
  • Conditioning (शर्त)
  • Society (समाज)

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THE End

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